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बिहार में आर्थिक विषमता: सबसे अमीर और सबसे गरीब जिले

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KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार, जो भारत के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में से एक है, अपनी आर्थिक स्थिति में काफी अंतर देखता है। राज्य के विभिन्न जिलों में आर्थिक विकास के स्तर में एक स्पष्ट भेदभाव है। जहां पटना, बिहार का सबसे समृद्ध जिला है, वहीं शिवहर को राज्य का सबसे गरीब जिला माना जाता है। यह अंतर राज्य में विकास की गति और अवसरों के असमान वितरण को दर्शाता है।

बिहार में अमीर और गरीब जिलों के बीच अंतर

पटना, बिहार की राजधानी, राज्य का सबसे समृद्ध जिला है। पटना में उच्च जीडीपी, बेहतर बुनियादी ढांचा, और तेजी से बढ़ते व्यवसायिक अवसरों के कारण यह सबसे विकसित जिला बन गया है। वहीं, दूसरी ओर शिवहर, बिहार का सबसे गरीब जिला है, जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी और विकास की धीमी गति ने इसे पीछे छोड़ दिया है।

बिहार के अंदर आर्थिक विकास के अंतर का मूल्यांकन सकल जिला घरेलू उत्पाद (GDDP) और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर किया जाता है। पेट्रोल, डीजल, और एलपीजी की खपत भी आर्थिक विकास के संकेतक माने जाते हैं। पटना की जीडीपी अन्य जिलों की तुलना में बहुत अधिक है, जबकि शिवहर की जीडीपी सबसे कम है।

अमीर और गरीब जिलों की सूची

बिहार के आर्थिक विकास का मूल्यांकन करते समय यह साफ दिखाई देता है कि कुछ जिले तेजी से विकास की राह पर चल रहे हैं, जबकि कुछ पिछड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए:

  • पटना: प्रति व्यक्ति आय ₹121,396
  • बेगूसराय: प्रति व्यक्ति आय ₹49,064
  • मुंगेर: प्रति व्यक्ति आय ₹46,795

वहीं, गरीब जिलों की सूची में शामिल हैं:

  • शिवहर: प्रति व्यक्ति आय ₹19,561
  • सीतामढ़ी: प्रति व्यक्ति आय ₹21,931
  • अररिया: प्रति व्यक्ति आय ₹22,204

यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की खपत से भी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जाता है। उदाहरण के लिए, पटना में पेट्रोल की खपत अधिक है, वहीं शिवहर में यह खपत बहुत कम है, जो इस जिले के आर्थिक संकट को दर्शाता है।

आर्थिक स्थिति: प्रमुख संकेतक

  1. पेट्रोल की खपत:

    • प्रमुख जिले: पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया
    • पिछड़े जिले: लखीसराय, बांका, जहानाबाद
  2. डीजल की खपत:

    • प्रमुख जिले: पटना, शेखपुरा, औरंगाबाद
    • पिछड़े जिले: शिवहर, सिवान, गोपालगंज
  3. एलपीजी की खपत:

    • प्रमुख जिले: पटना, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर
    • पिछड़े जिले: अररिया, बांका, किशनगंज

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि जहां पटना और अन्य बड़े शहरों में उपभोग की दर उच्च है, वहीं छोटे और गरीब जिलों में यह दर कम है, जो इन जिलों के विकास के बाधित होने का संकेत है।

बिहार की आर्थिक वृद्धि: पिछले एक दशक में बड़ा बदलाव

बिहार के विकास दर में पिछले दशक में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की ग्रोस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GSDP) 2011-12 के ₹2.47 लाख करोड़ से बढ़कर 2023-24 में ₹8.54 लाख करोड़ हो गई है। यह वृद्धि केंद्रीय सहायता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व के प्रभाव को दर्शाती है।

बिहार की विकास दर राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है, और यह राज्य तेलंगाना के बाद देश में दूसरे स्थान पर है। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप, बिहार की प्रति व्यक्ति आय भी ₹66,828 तक पहुंच गई है, जो पिछले साल से 12.8% अधिक है।

मुख्य क्षेत्रों का योगदान: कृषि बनाम सेवाएँ

बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है, हालांकि सेवाओं (ट्रेड, बैंकिंग, रियल एस्टेट) का हिस्सा अब सबसे अधिक है। राज्य के तृतीयक क्षेत्र (सेवा क्षेत्र) ने 59% योगदान दिया है। कृषि क्षेत्र का योगदान अभी भी 20% के आसपास है।

  • कृषि: बिहार में कृषि क्षेत्र में विशेष रूप से धान, गेहूं, और मक्का का उत्पादन बढ़ा है। इसके अलावा, आम और लीची के बागानों का क्षेत्रफल भी बढ़ रहा है।
  • सेवाएँ: राज्य सरकार ने व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीकी क्षेत्र में निवेश बढ़ाया है, जिससे आर्थिक विकास को गति मिली है।

बिजली की खपत और कृषि क्षेत्र का समर्थन

बिहार में कृषि क्षेत्र को बिजली की बढ़ती खपत से भी फायदा हो रहा है। 2023-24 में, कृषि क्षेत्र ने कुल बिजली खपत का 17.6% हिस्सा लिया, जो 2019-20 में महज 4.3% था। यह वृद्धि दर्शाती है कि सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए बेहतर इरीगेशन (सिंचाई) सुविधाएं और बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की है।

सरकार का ध्यान: सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढांचे पर खर्च

राज्य सरकार ने सामाजिक सेवाओं में भी वृद्धि की है। 2019-20 से 2023-24 के बीच, बिहार सरकार का पूंजीगत व्यय तीन गुना बढ़ा है। इसका मतलब है कि राज्य सरकार ने बुनियादी ढांचे की ओर अधिक निवेश किया है, जिससे भविष्य में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही, सामाजिक सेवाओं पर खर्च भी बढ़ा है। 2023-24 में यह खर्च बढ़कर ₹83,225 करोड़ हो गया है, जो 2019-20 में ₹57,816 करोड़ था।

बिहार का वित्तीय स्वास्थ्य और विकास के संकेतक

बिहार के वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार के संकेत हैं। सरकार का ध्यान राजस्व में वृद्धिसंवर्धित पूंजीगत खर्च, और सामाजिक कल्याण पर है। यह दर्शाता है कि राज्य सरकार ने अपने संसाधनों का कुशल प्रबंधन किया है, जिससे विकास के परिणामस्वरूप आने वाले वर्षों में और अधिक सफलता मिलेगी।

बिहार में आर्थिक विषमता अभी भी एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। जहां पटना, बेगूसराय और मुंगेर जैसे जिले समृद्ध हैं, वहीं शिवहर, सीतामढ़ी और अररिया जैसे जिले विकास में पीछे हैं। हालांकि, बिहार की अर्थव्यवस्था में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और राज्य सरकार की योजनाएं सकारात्मक बदलाव ला रही हैं।

राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से उम्मीद है कि बिहार के विभिन्न जिलों के बीच आर्थिक विषमता को कम किया जा सकेगा। आधुनिक बुनियादी ढांचेसामाजिक सेवाओं पर खर्च, और कृषि क्षेत्र में निवेश से बिहार का भविष्य और अधिक उज्जवल होने की संभावना है। यदि इस दिशा में सही नीति और संसाधन मिलते रहे, तो आने वाले वर्षों में बिहार की आर्थिक स्थिति में और सुधार हो सकता है, और समृद्धि के लाभ पूरे राज्य के विभिन्न हिस्सों में पहुंचेगा|


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